Dal Badlu Politics: संविधान के अनुसार दल बदलने के क्या है नियम ?

चुनाव में हम जिस नेता को वोट देते हैं और वह जिस पार्टी का समर्थन कर रहा होता है Dal Badlu Politics के कारण चुनाव जीतने के बाद वह दूसरी पार्टी में शामिल हो जाता है जिससे वह चुनाव जीतने से पहले गालियां दे रहा था तब सभी नेता और Party दूध के धुले हो जाते हैं

ऐसे में हमारे मन में एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि कैसे यह Dal Badlu Politics हो सकती है संविधान में इसका क्या नियम है जबकि यदि कोई एक नेता चाहे वह विधायक हो या सांसद हो जब वह अपनी पार्टी को छोड़ता है और दूसरी पार्टी में शामिल होता है तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाती है

संविधान के अनुसार दल बदलने के क्या है नियम

भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) शामिल है। इस कानून के तहत, कोई भी निर्वाचित सदस्य, चाहे वह सांसद हो या विधायक, अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल नहीं हो सकता है। यदि कोई सदस्य ऐसा करता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो सकती है।

दल-बदल विरोधी कानून के तहत दल-बदल की परिभाषा निम्नलिखित है:

  • कोई सदस्य अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है।
  • कोई सदस्य पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता है।
  • कोई सदस्य पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है।

दल-बदल विरोधी कानून के तहत दल-बदल की जांच करने का अधिकार सदन के अध्यक्ष को होता है। अध्यक्ष दल-बदल के आरोप की जांच के लिए एक समिति गठित कर सकता है। समिति की रिपोर्ट के आधार पर अध्यक्ष दल-बदल के आरोप को सही पाता है, तो वह सदस्य की सदस्यता समाप्त कर सकता है।

दल-बदल विरोधी कानून के कुछ अपवाद भी हैं। इन अपवादों में शामिल हैं:

  • यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य एक साथ पार्टी छोड़ देते हैं, तो उन पर दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है।
  • यदि किसी सदस्य को पार्टी से निष्कासित कर दिया जाता है, तो उस पर दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है।
  • यदि किसी सदस्य की पार्टी को विघटित कर दिया जाता है, तो उस पर दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता है।

दल-बदल विरोधी कानून का उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखना है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचित सदस्य अपनी पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों का पालन करें। यह कानून यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकारें अस्थिर न हों।

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